भगवान् का न्याय
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न्याय वो परिक्रिया है जिससे किसी के अच्छे या बुरे कर्मो का अवलोकन करके उसे सुख(आनंद) या दुःख (दण्ड ) दिया जाये जो लोग बुरे कर्म करते है वो दंड के भागीदार होते हैं और जो लोग अच्छे कर्म करते है वो लोग इस जीवन में आनंद प्राप्त करते हैं सामाजिक न्याय भी इसी सिद्धान्त पर काम करता है जो लोग बुरे काम जैसे चोरी ,डैकती , हत्या या बलात्कार आदि अपराध करते है उन्हें न्यायिक अदालत द्वारा दंड दिया जाता है और जो लोग अच्छे काम जैसे समाज सेवा ,गरीबों की सेवा या जन कल्याणकारी काम करते हैं उन्हें समाज से प्रतिष्ठा और सम्मान मिलता है लेकिन एक सवाल दिल में आता है कि भगवान् का न्याय क्या है ? क्या वो सभी को उचित न्याय देता है? क्या जो सुख दुःख हम अपने जीवनकाल में भोगते हैं वो सही है? क्या हमे सुख और दुःख अपने अच्छे या बुरे कर्मो के फल के कारण मिलता है ? मैं मानता हूँ कि भगवान् हमारे साथ न्याय नही करता क्योकि न्याय वो होता है जिसमे अपराधी को पता हो कि उसने क्या अपराध किया है। अगर किसी को ये नही पता कि उसे उसके किस अपराध की सज़ा मिल रही है और उस सज़ा की अवधी कितनी है तो वो न्यायसंगत नही है मैं...