भगवान् कौन है
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जब हम इस विशाल ब्रह्मांड को देखते हैं, तब हम एक अद्भुत शक्ति का अनुभव करते हैं जो सभी को संतुलित रखती हैं । दूसरा, जब हम सुंदर प्रकृति को देखते हैं, हम इसकी प्रशंसा करते हैं और उसके साथ आत्मीयता का अनुभव करते हैं। फिर भी हम कुदरती आपदा, बीमारी, गरीबी, अत्यन्त दुःख, अन्याय और हिंसा से व्याकुल होते हैं। एक ओर हम देखते हैं किस तरह मनुष्यों ने विज्ञान और तकनिकी में तरक्की की है और दूसरी तरफ हम देखते हैं कि किस तरह ज़्यादा से ज़्यादा लोग तनाव, डिप्रेसन और चिंता से जूझ रहे हैं। दुनिया के प्रति ऐसा दोतरफा दृष्टिकोण कई सारे प्रश्न खड़े करता है जैसे कि - भगवान कहाँ हैं? क्या प्रार्थना में शक्ति है? भगवान का प्रेम कहाँ खो गया? क्यों इतना अन्याय है? क्यों अच्छे कर्म करनेवाले लोगों को सहन करना पड़ता हैं, जबकि दूसरे लोग जो गलत करते हैं फिर भी आज़ाद घुमते हैं? क्या भगवान इतना निर्दयी हो सकता है ? क्यों भगवान की इस सूंदर रचना धरती पर इतना दुःख है ? क्यों इस धरती पर कोई भी प्राणी सुखी नही है ?क्यों लोग गरीबी , भुखमरी , रोगों एवं बिमारिओ , प्राकृतिक आपदाओ ,दुर्घटनाओ , और चिंता से परेशान हैं
तो क्या भगवान हैं? हाँ, वास्तव में भगवान हैं! क्योकि कोई तो है जिसने इस ब्रह्मांड की रचना की है कोई तो है जो इस ब्रह्मांड और इस प्रकति को चला रहा है और उसे हम अपने अंदर भी महसूस कर सकते है
भगवान् वो है जिसमे हम आस्था और विश्वास रखते हैं कोई भी व्यक्ति और प्राणी इस धरती पर बिना विश्वास और आस्था के नही रह सकता और वो विश्वास और आस्था ही भगवान् है वो कोई भी संजीव या निर्जीव , वस्तु या प्राणी हो सकता है
भगवान् एक ऐसी शक्ति है जो हमेशा अपने होने का आभाष कराती है
कुछ ऐसी चींजें है जो हमारे वश में नही हैं जैसे हानि, लाभ, जीवन, मरण, यश और अपयश। जिसे कोई तो निर्धारित करता है और वो ही भगवान् है , हमारे दिल में एक सच छुपा हुआ है जब भी हम कुछ बुरा या अच्छा करतें है तो अंदर से एक आवाज़ आती है जो भगवान् की मौजूदगी को दिखता है
इस बह्रामंड में इतने प्राणी -जीव -जंतु और उनकी प्रजातियां ,पेड़-पौधे, नदियां-सागर ,पहाड़-पर्वत ,ग्रह -तारे और आकाश -पाताल जिनपर हमारा कोई नियंत्रण नही है कोई तो ऐसी शक्ति है जो इन सबको सुचारू रूप से चला रही हैऔर वो ही भगवान् है
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