ऐसा माना जाता है कि विज्ञान और अध्यात्म एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी और विरोधाभासी हैं। अक्सर यह आम धारणा लोगों के दिमाग में घर कर जाती है और वे इससे अलग सोचना नहीं चाहते। लेकिन यही सोच दरअसल वैचारिक विकास के रुकने का भी संकेत है। जब हम अध्यात्म को संकीर्णताओं के घेरे में कैद कर देते हैं तब भी और जब हम विज्ञान का उपयोग विध्वंस के लिए करने लगते हैं तब भी, दोनों ही तरीकों से हम विनाश की ओर कदम बढ़ाते हैं तथा विकास से कोसों दूर होते चले जाते हैं। अध्यात्म तथा विज्ञान दोनों की उत्पत्ति सृजन के मूल मंत्र के साथ हुई है। सृष्टि ने यह विषय बाहरी जगत तथा अंतरात्मा को जोड़ने के उद्देश्य से उपहारस्वरूप मनुष्य को दिए हैं। विज्ञान और अध्यात्म परस्पर शत्रु नहीं मित्र हैं, एक-दूजे के संपूरक हैं। विज्ञान हमें अध्यात्म से जोड़ता है और अध्यात्म हमें वैज्ञानिक तरीके से सोचने का सामर्थ्य देता है। विज्ञान का आधार है तर्क तथा नई खोज और किसी धर्मग्रंथ में भी इन्हीं बातों को कहा गया है। इसलिए अध्यात्म एवं विज्ञान में एक जैसी समानताएँ और एक जैसे विरोधाभास हैं। यदि वि...
प्रश्न : जब कोई व्यक्ति पुनर्जन्म लेता है तो क्या वह प्राय: उसी लिंग में वापस जन्म लेता है? ऐसा बिल्कुल जरूरी नहीं है। मेरे आसपास ऐसे कई लोग मौजूद हैं, जो पिछले जन्म में किसी दूसरे लिंग में थे। कुछ लोगों के साथ तो यह मेरा करीबी अनुभव रहा है। पुनर्जन्म की स्थिति में कोई जरूरी नहीं कि लिंग, यहां तक कि प्रजाति भी पिछले जन्म जैसी ही हो। दरअसल, ये सारी चीजें आपकी प्रकृति व प्रवृत्ति से तय होती हैं। गौतम बुद्ध के आस-पास कुछ ऐसा ही हुआ था ऐसा कई लोगों के साथ हुआ है, कई योगियों के साथ भी हुआ है। खासतौर पर गौतम बुद्ध के आसपास तो निश्चित तौर पर हुआ है। कई बौद्ध भिक्षु दोबारा स्त्री-रूप में पैदा हुए। ये बौद्ध भिक्षु अपने पिछले जन्मों में जब बुद्ध के पास थे तो तादाद में वहां महिलाओं की अपेक्षा पुरुष ज्यादा थे। पुरुषों की अधिक तादाद के पीछे मुख्य रूप से सांस्कृतिक वजहें थीं। उन दिनों महिलाएं बिना पुरुष की इजाजत के घर से बाहर नहीं निकलती थीं। जब कोई पुरुष अपनी पत्नी और बच्चों से उब जाता था तो वह घर छोडक़र बाहर निकल सकता था। लेेकिन एक महिला अपने बच्चों को तब तक छोडक़र नहीं जा सकती थी, ज...
श्रीकृष्ण की लीलाओं और महाभारत को लेकर के कई सीरियल बन चुके है जिनमे श्रीकृष्ण का किरदार ही हमेशा से लोकप्रिय होता रहा है लेकिन आपने देखा तो होगा ही कि पिछली सदी के एक्टर्स का आज की इस मॉडर्न इंडस्ट्री में उतना रूतबा नही रह गया है और उन्होंने अपनी जिन्दगी का रूख किसी और मोड़ लिया उन्ही में से एक बहुत ही मंजे हुए पुराने कलाकार हुआ करते थे सर्वदमन बनर्जी, जिन्होंने महाभारत में श्री कृष्ण का रोल बहुत ही ख़ूबसूरती के साथ निभाया था। उनके उस रोल की खूब तारीफ़ की जाती है वो इसमें बड़े ही गोरे से बड़े ही शांत लहजे में बोलकर खुद श्रीकृष्ण के होने की अनुभूति करवा देते है लेकिन आपने कभी सोचा है कि आज की तारीख में बनर्जी जी कहाँ है? वो महान कलाकार आखिर इस इंडस्ट्री से कहाँ गुम हो गया जिसे कृष्ण समझकर लोग उसके पाँव पकड़ लेते थे। उनके उस रोल की खूब तारीफ़ की जाती है वो इसमें बड़े ही गोरे से ब...
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