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Showing posts from 2017

भगवान् श्रीकृष्ण का रोल निभाने वाले एक्टर आज घर चलाने के लिए करते है ये काम

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श्रीकृष्ण की लीलाओं और महाभारत को लेकर के कई सीरियल बन चुके है जिनमे श्रीकृष्ण का किरदार ही हमेशा से लोकप्रिय होता रहा है लेकिन आपने देखा तो होगा ही कि पिछली सदी के एक्टर्स का आज की इस मॉडर्न इंडस्ट्री में उतना रूतबा नही रह गया है और उन्होंने अपनी जिन्दगी का रूख किसी और मोड़ लिया उन्ही में से एक बहुत ही मंजे हुए पुराने कलाकार हुआ करते थे सर्वदमन बनर्जी, जिन्होंने महाभारत में श्री कृष्ण का रोल बहुत ही ख़ूबसूरती के साथ निभाया था।                                                             उनके उस रोल की खूब तारीफ़ की जाती है वो इसमें बड़े ही गोरे से बड़े ही शांत लहजे में बोलकर खुद श्रीकृष्ण के होने की अनुभूति करवा देते है लेकिन आपने कभी सोचा है कि आज की तारीख में बनर्जी जी कहाँ है? वो महान कलाकार आखिर इस इंडस्ट्री से कहाँ गुम हो गया जिसे कृष्ण समझकर लोग उसके पाँव पकड़ लेते थे। उनके उस रोल की खूब तारीफ़ की जाती है वो इसमें बड़े ही गोरे से बड़े ही शांत लहजे में बोलकर खुद श्रीकृष्ण के होने की अनुभूति करवा देते है लेकिन आपने कभी सोचा है कि आज की तारीख में बनर्जी जी कहाँ है? वो महान कलाकार आ

कौन किस योनि में जन्म लेगा? क्या कोई उसी लिंग में वापस जन्म लेता है?

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प्रश्न : जब कोई व्यक्ति पुनर्जन्म लेता है तो क्या वह प्राय: उसी लिंग में वापस जन्म लेता है? ऐसा बिल्कुल जरूरी नहीं है। मेरे आसपास ऐसे कई लोग मौजूद हैं, जो पिछले जन्म में किसी दूसरे लिंग में थे। कुछ लोगों के साथ तो यह मेरा करीबी अनुभव रहा है। पुनर्जन्म की स्थिति में कोई जरूरी नहीं कि लिंग, यहां तक कि प्रजाति भी पिछले जन्म जैसी ही हो। दरअसल, ये सारी चीजें आपकी प्रकृति व प्रवृत्ति से तय होती हैं। गौतम बुद्ध के आस-पास कुछ ऐसा ही हुआ था ऐसा कई लोगों के साथ हुआ है, कई योगियों के साथ भी हुआ है। खासतौर पर गौतम बुद्ध के आसपास तो निश्चित तौर पर हुआ है। कई बौद्ध भिक्षु दोबारा स्त्री-रूप में पैदा हुए। ये बौद्ध भिक्षु अपने पिछले जन्मों में जब बुद्ध के पास थे तो तादाद में वहां महिलाओं की अपेक्षा पुरुष ज्यादा थे। पुरुषों की अधिक तादाद के पीछे मुख्य रूप से सांस्कृतिक वजहें थीं। उन दिनों महिलाएं बिना पुरुष की इजाजत के घर से बाहर नहीं निकलती थीं। जब कोई पुरुष अपनी पत्नी और बच्चों से उब जाता था तो वह घर छोडक़र बाहर निकल सकता था। लेेकिन एक महिला अपने बच्चों को तब तक छोडक़र नहीं जा सकती थी, ज

पुनर्जन्म से जुड़े कुछ रहस्य व् रोचक जानकारी!!

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क्या पुनर्जन्म होता है?   पुनर्जन्म यह धारणा है कि व्यक्ति मृत्यु के पश्चात पुनः जन्म लेता है। हम ये कहें कि कर्म आदि के अनुसार कोई मनुष्य मरने के बाद कहीं अन्यत्र जन्म लेता है। पाश्चात्य मत में सामान्यतः पुनर्जन्म स्वीकृत नहीं है क्योंकि वहाँ ईश्वरेच्छा और यदृच्छा को ही सब कुछ मानते हैं। कहा जाता है, यदि व्यक्ति का पुनर्जन्म होता है तो उसे अपने पहले जन्म की याद क्यों नहीं होती? भारतीय मत इसका उत्तर देता है कि अज्ञान से आवृत्त होने के कारण आत्मा अपना वर्तमान देखती है और भविष्य बनाने का प्रयत्न करती है, पर भूत को एकदम भूल जाती है। यदि अज्ञान का नाश हो जाए तो पूर्वजन्म का ज्ञान असंभव नहीं है। भारत की पौराणिक कथाओं में इस तरह के अनेक उदाहरण हैं और योगशास्त्र में पूर्वजन्म का ज्ञान प्राप्त करने के उपाय वर्णित हैं। पुनर्जन्म पर हमेशा से ही भ्रम रहा है। कई लोगों ने इसे माना है तो कई लोगो को आज भी इस पर संदेह है। विज्ञान की बात करें तो विज्ञानिकों में भी अभी तक इसपर भ्रम ही है। हिंदू धर्म के अनुसार मनुष्य का केवल शरीर मरता है उसकी आत्मा नहीं। आत्मा एक शरीर का त्याग कर दूसरे शरीर मे

अच्छे लोगों के साथ बुरा क्यों होता है?जीवन में दुख-ही-दुख क्यों हैं? परमात्मा ने यह कैसा जीवन रचा है?

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जीवन दुख-ही-दुख नहीं है। यह तुमसे किसने कहा? हां यहां दुख भी हैं, लेकिन दुख केवल भूमिकाएं हैं सुख की। जैसे फूल के पास कांटे लगे हैं, वे सुरक्षायें हैं फूल की। कांटे फूलों के दुश्मन नहीं हैं; उनके रक्षक हैं, पहरेदार हैं। कांटे फूलों के सेवक हैं। जीवन दुख-ही-दुख नहीं है। यद्यपि दुख यहां हैं। पर हर दुख तुम्हें निखारता है और बिना निखारे तुम सुख को अनुभव न कर सकोगे। हर दुख परीक्षा है। हर दुख प्रशिक्षण है। ऐसा ही समझो कि कोई वीणावादक तारों को कस रहा है। अगर तारों को होश हो तो लगेगा कि बड़ा दुख दे रहा है, मीड़ रहा है, तारों को कस रहा है, बड़ा दुख दे रहा है! लेकिन वीणावादक तारों को दुख नहीं दे रहा है; उनके भीतर से परम संगीत पैदा हो सके, इसका आयोजन कर रहा है। तबलची ठोंक रहा है तबले को हथौड़ी से। तबले को अगर होश हो तो तबला कहे ः बड़ा दुख है, जीवन में दुख-ही-दुख है! जब देखो तब हथौड़ी, चैन ही नहीं है। मगर तबलची तबले को सिर्फ तैयार कर रहा है कि नाद पैदा हो सके। दुख नहीं है, जैसा तुम देखते हो वैसा। परमात्मा तुम्हें तैयार कर रहा है। यह सुख की अनंत यात्रा है। लेकिन यात्रा में कुछ कीमत चुकानी पड़ती

पाप और पुण्य क्या है

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कुछ युवकों ने मुझ से पूछा : पाप क्या है? मैंने कहा, मूर्च्‍छा वस्तुत: होश पूर्वक कोई भी पाप करना असंभव है। इसलिए, मैं कहता हूं कि जो परिपूर्ण होश में हो सके, वही पुण्य है। और जो मूच्र्छा, बेहोशी के बिना न हो सके वही पाप है।  एक अंधकार पूर्ण रात्रि में किसी युवक ने एक साधु के झोपड़े में प्रवेश किया। उसने जाकर कहा, मैं आपका शिष्य होना चाहता हूं।  साधु ने कहा, स्वागत है। परमात्मा के द्वार पर सदा ही सबका स्वागत है।  वह युवक कुछ हैरान हुआ और बोला, लेकिन बहुत त्रुटियां हैं, मुझ में! मैं बहुत पापी हूं!  यह सुन साधु हंसने लगा और बोला : परमात्मा तुम्हें स्वीकार करता है, तो मैं अस्वीकार करने वाला कौन हूं! मैं भी सब पापों के साथ तुम्हें स्वीकार करता हूं।  उस युवक ने कहा, लेकिन मैं जुआ खेलता हूं, मैं शराब पीता हूं- मैं व्यभिचारी हूं।  वह साधु बोला, मैंने तुम्हें स्वीकार किया, क्या तुम भी मुझे स्वीकार करोगे? क्या तुम जिन्हें पाप कह रहे हो, उन्हें करते समय कम से कम इतना ध्यान रखोगे कि मेरी उपस्थिति में उन्हें न करो। मैं इतनी तो आशा कर ही सकता हूं!  उस युवक ने आश्वासन दिया। गुरु का इतना आदर स्वाभ

क्या कलयुग में भगवान से ज्यादा शक्तिशाली हो गए हैं राक्षस ?

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भगवान् एक अनुभूति है जिसे देखा और सुना नहीं जा सकता उन्हें  सिर्फ महसूस किया जा सकता है ,हर कोई व्यक्ति किसी न किसी को पूजता या किसी चीज़ पर विश्वास करता है वो ही उसके लिए मार्गदर्शक होता है उसके लिए भगवान्  होता है भगवान मौजूद है लेकिन सवाल उठता है कि वो हमारे लिए अच्छे है या बुरे । वैसे दो शक्तियां है इस ब्रह्माण्ड में एक जिसे हम भगवान् कहते है और सोचते हैं कि वो हमेशा हमारी भलाई और हमे सुख समृद्धि देने के लिए काम करते हैं दूसरा जिसे हम राक्षस कहते है जो हमे कष्ट और दुःख देने के लिए होते हैं अब बात आती है ताकत और शक्तियों की हमे या ब्रह्माण्ड में जितने भी लोग हैं वो ज्यादातर दुखी और कष्ट में हैं क्या इससे ऐसा लगता है कि इस कलयुग में आसुरी शक्तियों का बोलबाला है ? क्या देवलोक का साम्राज्य कलयुग में आसुरी शक्तियों के हाथ में हैं ? क्युकी भगवान् हमेशा से दयालु और सब पर अपनी  कृपा  बरसाने वाले रहे हैं वो किसी पर दुःख या इतना अत्याचार होते नहीं देख सकते जो आज के युग में हो रहा है। भगवान् दयालु हैं ये सभी कहते और महसूस करते हैं लेकिन इस संसार में दुखों को देखते हुए लगता जैसे इ

लोकतंत्र की बात छोडो, यंहा तो भगवान के दर्शन तक बिक जाते हैं

लोकतंत्र की बात छोडो, यंहा तो भगवान के दर्शन तक बिक जाते हैं

वो तो फिर भी भगवान् है

लोग तो जन्म देने वाले माँ बाप तक को नकार देते है  वो तो फिर भी भगवान् है

विज्ञान और अध्यात्म-एक-दूजे के पूरक और एक ही सिक्के के दो पहलू

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ऐसा माना जाता है कि विज्ञान और अध्यात्म एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी और विरोधाभासी हैं। अक्सर यह आम धारणा लोगों के दिमाग में घर कर जाती है और वे इससे अलग सोचना नहीं चाहते। लेकिन यही सोच दरअसल वैचारिक विकास के रुकने का भी संकेत है। जब हम अध्यात्म को संकीर्णताओं के घेरे में कैद कर देते हैं तब भी और जब हम विज्ञान का उपयोग विध्वंस के लिए करने लगते हैं तब भी, दोनों ही तरीकों से हम विनाश की ओर कदम बढ़ाते हैं तथा विकास से कोसों दूर होते चले जाते हैं।   अध्यात्म तथा विज्ञान दोनों की उत्पत्ति सृजन के मूल मंत्र के साथ हुई है। सृष्टि ने यह विषय बाहरी जगत तथा अंतरात्मा को जोड़ने के उद्देश्य से उपहारस्वरूप मनुष्य को दिए हैं। विज्ञान और अध्यात्म परस्पर शत्रु नहीं मित्र हैं, एक-दूजे के संपूरक हैं।   विज्ञान हमें अध्यात्म से जोड़ता है और अध्यात्म हमें वैज्ञानिक तरीके से सोचने का सामर्थ्य देता है। विज्ञान का आधार है तर्क तथा नई खोज और किसी धर्मग्रंथ में भी इन्हीं बातों को कहा गया है। इसलिए अध्यात्म एवं विज्ञान में एक जैसी समानताएँ और एक जैसे विरोधाभास हैं।    यदि विज्ञान बाहरी सच की खोज है तो अध्यात्म अं

मेरे मन में सुदामा के सम्बन्ध में एक बड़ी शंका थी कि एक विद्वान् ब्राह्मण अपने बाल सखा कृष्ण से छुपाकर चने कैसे खा सकता है

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मेरे मन में सुदामा के सम्बन्ध में एक बड़ी शंका थी कि एक विद्वान् ब्राह्मण अपने बाल सखा कृष्ण से छुपाकर चने कैसे खा सकता है गुरुदेव बताते हैं सुदामा की दरिद्रता, और चने की चोरी के पीछे एक बहुत ही रोचक और त्याग-पूर्ण कथा है- एक अत्यंत गरीब निर्धन बुढ़िया भिक्षा माँग कर जीवन यापन करती थी। एक समय ऐसा आया कि पाँच दिन तक उसे भिक्षा नही मिली वह प्रति दिन पानी पीकर भगवान का नाम लेकर सो जाती थी। छठवें दिन उसे भिक्षा में दो मुट्ठी चने मिले। कुटिया पे पहुँचते-पहुँचते उसे रात हो गयी। बुढ़िया ने सोंचा अब ये चने रात मे नही, प्रात:काल वासुदेव को भोग लगाकर खाऊँगी । यह सोंचकर उसने चनों को कपडे में बाँधकर रख दिए और वासुदेव का नाम जपते-जपते सो गयी। बुढ़िया के सोने के बाद कुछ चोर चोरी करने के लिए उसकी कुटिया मे आ गये। चोरों ने चनों की पोटली देख कर समझा इसमे सोने के सिक्के हैं अतः उसे उठा लिया। चोरो की आहट सुनकर बुढ़िया जाग गयी और शोर मचाने लगी ।शोर-शराबा सुनकर गाँव के सारे लोग चोरों को पकडने के लिए दौडे। चने की पोटली लेकर भागे चोर पकडे जाने के डर से संदीपन मुनि के आश्रम में छिप गये। इसी संदीपन मुनि के