पाप और पुण्य क्या है? What is Sins & Virtue?


पाप और पुण्य क्या है यह सबसे बड़ा सवाल है पाप और पुण्य को परिभाषित करना बड़ा मुश्किल है आमतौर पर बुरे कर्मों को पाप कहा जाता है जबकि अच्छे कर्मों को पुण्य। जाहिर सी बात है कि किसी का अच्छा करना ,किसी की मदद करना ,किसी को खुशी देना ,किसी का दिल न दुखाना,किसी को धोखा न देना  ,क्षमा करना ,सच बोलना,परोपकार करना ,दान करना, लोगों को सही मार्ग दिखाना ,धार्मिक काम करना,किसी मजबूर का सहारा बनना ,माँ बाप और समाज की सेवा करना, भूखे को खाना खिलाना पुण्य की श्रेणी में आता है पुण्य करने वाले लोगों को सुख की प्राप्ति होती है ,समाज में उस व्यक्ति की प्रतिस्ठा और रुतवा बढ़ता है और समाज ऐसे लोगों को सम्मानित भी करता है। 

वंही किसी का बुरा करना ,दिल दुखाना ,विश्वासघात ,धोखा ,गद्दारी ,किसी को दुःख देना ,गलत करने की नियत,झूठ बोलना ,निंदा करना,चोरी ,डकैती,हत्या,बलात्कार और किसी को प्रताड़ित करना,हिंसा,पशुहत्या,लालच ये सभी पाप की श्रेणी में आते है पाप करने वाले लोगों को दुःख और उन बुरे कर्मों का दंड भी मिलता है। 

यह पाप और पुण्य की एक साधारण सी व्याख्या है लेकिन पाप और पुण्य में कौन-कौन से कर्म जुड़े है कौन से कर्म बुरे है और कौन से अच्छे ,ऐसी सूची कंही नहीं मिलती, जिसमे अच्छे और बुरे कर्मों की कोई व्याख्या हो। ऐसी सूची किसी भी धार्मिक ग्रन्थ में भी नहीं मिलती जिससे ये पता चल सके की कौन से कर्म बुरे है और कौन से अच्छे 

मैं सूची की बात इसलिए कर रहा हूँ क्युकी कई बार कर्मों की परिभाषा कृत्य से नहीं बल्कि परिस्थितियाँ तय करती है कि वो कर्म बुरा है या अच्छा ,कर्म करने की भावना भी उस कर्म को अच्छा या बुरा बनाती है कई बार अच्छी भावना से और उद्देश्य के लिए किया गया बुरा कर्म भी पुण्य का काम करता है जैसे एक सैनिक का दूसरे दुश्मन सैनिक को मारना , पाप होगा या पुण्य :- हत्या को पाप माना जाता है लेकिन निजी दुश्मनी न होते हुए भी अपने समाज और देश की सुरक्षा के लिए की गयी हत्या पुण्य होता है 

यह अच्छी भावना से किया बुरे कर्म का एक अच्छा उदाहरण है और बुरी भावना या उद्देश्य से किया गया अच्छे काम भी पाप का काम करता है जैसे मैं अपनी किसी महत्वकांशा(राजनैतिक या व्यापारिक) और लालच के लिए गरीबों को दान देता हूँ या उनकी गरीबी और मज़बूरी का फायदा उठाता हूँ तो वह बुरी नियत से किया गया अच्छा कर्म है क्युकी दान देना अच्छा कर्म है जबकि अपनी स्वंम की महत्वकांशा और लालच के लिए किया गया कर्म बुरी भावना को दिखाता है

इसके कारण पाप और पुण्य में अंतर करना बड़ा मुश्किल हो जाता है हमें पता नहीं चलता भगवान् हमारे किस कर्म को पुण्य और किस को पाप गिन रहा है ,हमे किस कर्म के कारण दुःख और किसके कारण सुख प्राप्त हो रहा है 

कई ऐसे कर्म है जिनका पाप या पुण्य का पता करना बड़ा मुश्किल है जैसे
1. जीवों को भोजन के रूप में खाना -
भूख को मिटाने के लिए कुछ लोग जीवों को खाते है कुछ लोग तो शौक में खाते है जिसे पाप कहना अनुचित नहीं होगा लेकिन बहुत से लोगों को मज़बूरी में खाना पड़ता है.अब इसे भगवान् पाप मानते है या नहीं यह कह पाना बड़ा मुश्किल है। 

भगवान् या कह लो प्रकति ने कुछ चीज़ें स्वभाव में डाली है जैसे शेर का कुत्ते को मारकर खाना ,कुत्ते का बिल्ली को मारकर खाना ,बिल्ली का चूहे को मारकर खाना और चूहे का छोटे जीवों को मारकर खाना,जंगल में ज्यादातर जीव एक दूसरे को मारकर खाते है ,मनुष्यों का सीफ़ूड (Seafood) और अन्य जीवों का खाना, यह पाप है या नहीं यह भी कहना बड़ा मुश्किल है

2. सहमति से संबंध बनाना पाप होगा या नहीं ,यह भी कहना बड़ा मुश्किल है

3. अनजाने में छोटे जीवों की हत्या हो जाना जैसे चीटियों की पैरों तले कुचलने से और उड़ते मच्छर और मखियों की हत्या हो जाना, या अन्य किसी जीव की न जानते हुए भी हत्या हो जाना , पाप है या नहीं यह भी कहना बड़ा मुश्किल है

4. गुस्से में किसी का बुरा सोचना,सिर्फ सोचना न की बुरा करना  ,पाप है या नहीं यह भी कहना बड़ा मुश्किल है

यह कह पाना बड़ा मुश्किल है कि भगवान् हमारे कर्मों को किस हिसाब से पुण्य और पाप में सूचीबद्ध करते है जिसके कारण हमे दुःख और सुख मिलते है. पता नहीं किसी काम को जिसे हम अच्छा मानते हो लेकिन भगवान् की नज़र में वो पाप हो तो ऐसे में सुख पाना या इस संसार से मुक्ति पाना बड़ा ही दुर्लभ है इसके लिए हम कुछ नहीं कर सकते क्यूंकि हमे पाप और पुण्य की सही सूची का पता नहीं ,कि भगवान हमारे किन कर्मों को पुण्य तथा किन को पाप मानता है 

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